कीड़ा

एक बहुत ही खतरनाक कीड़ा है। पता नहीं कब इस कीड़े ने जन्म ले लिया, लेकिन अब बहुत बड़ा हो गया है। हर देश, शहर, कस्बा, समाज, घर और मन में बस चुका है ये जहरीला कीड़ा।
दुख की बात तो ये है कि कोई भी अपनी हालत से अनभिज्ञ नहीं है पर इस कीड़े को फलने-फूलने दिया जा रहा है।

'लोग-क्या-कहेंगे', जी यही नाम है इस कीड़े का। सारे फ़ैसले इस एक नाम को ध्यान में रखकर किये जाते हैं, फिर चाहे वो रोज मर्रा सम्बन्धित हो या फिर जीवन का अहम निर्णय हो। कपड़े कौनसे पहनने हैं, घर कैसा दिखना चाहिए, किसी को उपहार में क्या देना है, पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें या खुद की गाड़ी से ट्रैवल करें, खुशी के मौके पर घर में पूजा की जाए या पार्टी? कोई भी निर्णय करना ज़रा भी कठिन नहीं है, केवल इतना सोचना है कि आखिर लोग क्या कहेंगे!

निदा के अब्बू ने भी लोगों के ख़यालातों की कदर करते हुए उसका निकाह बाइस की उम्र में करवा दिया। निकाह की बात चलने पर निदा रोने लगी तो अब्बू ने कहा, "रोना बंद करें, अगर किसी ने सुन या देख लिया तो लोग यही कहेंगे कि हम अपनी बेटी की ना ख़ुशी चाहने वाले वालिद हैं।"
और फिर क्या, निदा के आंसूओं को विदाई के आंसू समझ लिया गया। निदा की कहानी जैसी ही है ज़्यादातर हर लड़की की कहानी, तो इसमें कुछ नया नहीं था।
लेकिन अगर 'लोगों' के बारे में न सोच कर निदा के आंसू पौंछे जाते और उसकी आरज़ू की कदर की जाती तो एक अलग ही कहानी बयां करने का मौका मिलता!

ख़ैर! जैसा लोग चाहें!

लेकिन क्या असर पड़ेगा 'लोगों' पर अगर कोई अपने मन मुताबिक कोई फैसला कर ले तो? क्या उनकी अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जाएगी या फिर कद छोटा हो जाएगा? या शायद उन्हें दस्त लग जाएंगे! ये भी हो सकता है कि उनकी समाज में पहले जितनी पूछ ना रहे!
ये सारे सवाल अनीश के मन में तब उठे जब वो अपनी प्राइवेट कंपनी की नौकरी छोड़ कर एक एनजीओ के साथ काम करना चाहता था। लेकिन अर्चन ये थी कि लोगों और रिश्तेदारों का मानना कुछ अलग ही था। उनकी मानें तो अनीश जैसा बेवकूफ़ इंसान और कोई नहीं।
आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि अनीश आज भी बेवकूफ़ कहलाया जाता है और इस बात का उसे कोई अफ़सोस नहीं है। अनीश को ये नामंजूर था कि कोई कीड़ा उसके जीवन और इच्छाओं को तबाह कर दे। उसने खूब सोचा कि आख़िर इस कीड़े का अंत किस प्रकार से किया जा सकता है और कुछ ही समय में उसने कीट नाशक ढूंढ निकाला।

ये है वो असरदार कीट नाशक :
१. लोग क्या सोचते हैं ये सोचना मेरा काम नहीं है
२. कुछ तो लोग कहेंगे, उनका काम है कहना; मेरा काम है वो करना जिसमें मुझे खुशी मिलती है
३. बचपन में सुनी तीन घोड़ों वाली कहानी का वो घोड़ा याद रखना चाहिए जिसके एक कान से धागा घुसाने पर दूसरे कान से निकल जाता था
४. 'लोगों' को भी डर है कि 'लोग क्या कहेंगे'

अब तो निदा भी इसी कीट नाशक का प्रयोग कर रही है। अच्छा यही होगा कि हम सब भी समय रहते इस कीट नाशक का उपयोग करें और 'लोग-क्या-कहेंगे' नाम के बेकार कीड़े को जल्द से जल्द खत्म कर दें।

-प्रियंका जैन

Comments

  1. Wonderful Priyanka... A much needed post.... Right Message at right time...

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